ऐ बाईस, कब से हम, तेरी राह में मुंतजिर थे, तुम आये हो, इस तरह कि, भनक नहीं लगी ।

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एक दिल की शायरी

ऐ बाईस, कब से हम, तेरी राह में मुंतजिर थे, तुम आये हो, इस तरह कि, भनक नहीं लगी ।

 वर्षांतरण : 2021-22

साल ठीक गुजर गया, खबर नहीं लगी,

बचे रहे कि किसी की, नज़र नहीं लगी ।


बहुत सी गुगलियां थी, इसके तरकश में,

अच्छा हुआ खेलने की, तलब़ नहीं लगी ।


आते ही चुनौतियां पेश करने लगा है बाईस,

इक्कीस की तरह इसे भी, समझ नहीं लगी ।


चलता ही रहता है रुकता नहीं है समय,

लत कामचोरी की इसे, गलत नहीं लगी ।


सुकूं बहुत था, जाने वाले तेरी कुरबत में,

दाग़ था दामन में लेकिन, सनद नहीं लगी ।


ऐ बाईस, कब से हम, तेरी राह में मुंतजिर थे,

तुम आये हो, इस तरह कि, भनक नहीं लगी ।


2020-best-quotes
2022


    01-01-2022


 

    पेशे-ख़िदमत है नए साल की दूसरी ग़ज़ल


ज़माने में आदमी के  पैहम  ख़ुशी  के  मौके सिमट  रहे हैं 

सुखों के बदले गले से अक्सर   ग़मों के साये लिपट रहे हैं 


यूँ फ़िक्र ने है जमाया डेरा दिलों में हर सू कि जीना मुश्किल  

लगा  है  ऐसा   सुकून   के  अब  तमाम  आसार  घट रहे हैं 


उरूज पर बख़्त जो  कभी था कि ख़ाक छूने से बनती ज़र थी  

वही   मुक़द्दर  ज़वाल  पर   है  तमाम   पासे   पलट  रहे हैं 


बदन की चर्बी लटक रही है  ज़बीं पे नक़्श-ओ-निगार है अब 

कि तौर-ए-ज़ेहनी हुज़ूर पैहम हमीं से हम ख़ुद ही कट रहे हैं 


कभी  इशारों पे जो सफ़ीने  धमाल करते थे  बह्र-ए-जाँ पे 

ये हाल है अब  वही सफ़ीने किनारों पर ही   उलट रहे हैं 


नहीं किसी को किसी से मतलब न पाक है कोई  रिश्ता-नाता 

मरासिमों  के  ये  हाल  हैं  अब  किसी तरह से घिसट रहे हैं 


यक़ीन  के अर्श  पे  हैं छाये  धुआँ  भरे  जो   हज़ार  बादल 

कहीं से लगता नहीं है बादल ये  धुंध के फिर  से छट रहे हैं 


भला हो  उनका जो ग़ैर थे पर  मुसीबतों में  दिया सहारा 

दिया हमेशा उन्होंने धोका ज़ियादा-तर जो  निकट रहे हैं 


'तुरंत '  फ़ितरत  से  हैं  जुझारू न हार  मानी है  ज़िदगी भर 

मुसीबतों से लड़े हैं कल  तक अभी तलक  भी  निपट रहे हैं 


शब्दार्थ--

पैहम    =    लगातार 

 फ़िराक़   =    विरह 

उरूज     =    बुलंदी 

बख़्त     =    भाग्य 

 ज़वाल    =    ढलान /अवनति 

ज़बीं    =    ललाट ,

नक़्श-ओ-निगार    =    बेलबूटे /झुर्रियां 

तौर-ए-ज़ेहनी    =    दिमागी तौर पर

 सफ़ीने     =    नावें 

 बह्र-ए-जाँ    =    ज़िंदगी का समुन्द्र

मरासिमों    =    संबंधों 

अर्श    =    आसमान

 फ़ितरत    =    स्वभाव

 


    पेशे-ख़िदमत है नए साल की तीसरी ग़ज़ल


नये वर्ष की आहट का अब , हम सबको है हर्ष | 

बिछड़ रहा गत साल आज है , स्वागत नूतन वर्ष || 

यही  कामना अच्छा हो बस , आने वाला साल | 

सरकारें ये करें कोशिशें  , जनता हो ख़ुशहाल || 


आशा रक्खें नये साल में  ,बदलेगा परिवेश | 

कोविड  के पंजे से होगा , मुक्त हमारा देश || 

अपनी अपनी मंज़िल पर हो , अर्जुन जैसी आँख ,

 लक्ष्य  भेद  को  करना  होगा  ,थोड़ा  सा  संघर्ष | 

बिछड़ रहा गत साल आज है , स्वागत नूतन वर्ष || 


आने  को   बाईस,  भूत   में ,  खोयेगा   इक्कीस | 

गये  साल की छोड़ें पीछे ,मिली  अगर  है  टीस || 

कल को पीछे छोड़  सभी  हम ,  नूतन  भरें  उड़ान  | 

हरिक क्षेत्र में  हम सब मिल कर , करें देश-उत्थान || 

सावधान रह गद्दारों का , करें विफ़ल षड़यंत्र, 

पाठ  पढ़ाएँ  उन्हें  देश  का ,  जो  चाहें  अपकर्ष | 

बिछड़ रहा गत साल आज है , स्वागत नूतन वर्ष || 


गये वर्ष को जल्द  भुलाना  , सरल नहीं है बात  | 

किन्तु शीघ्र यह निर्णय हमको , लेना होगा तात || 

सदा भूत में जीने से कुछ , मिले नहीं परिणाम  | 

अच्छा है सोचें करना क्या  , आगत में है काम || 

विगत वर्ष में की त्रुटियों की , करें समीक्षा आज ,

सबक सीख आगे  बढ़ जाएँ , यही उचित निष्कर्ष || 

बिछड़ रहा गत साल आज है , स्वागत नूतन वर्ष || 




अलविदा 2021,

एक ग़ज़ल आप सभी अहल-ए-नज़र की नज़र....

शाम होते ही चिराग़ों को जला लेते हैं।
अपने साए को ही हमसाया बना लेते हैं।।
[हमसाया - पड़ोसी, (यहाँ) दोस्त]

ख़्वाब जब आँखों की महफ़िल में नहीं आते हैं।
बज़्म-ए-दिल में तेरी यादों को बुला लेते हैं।।
(बज़्म-ए-दिल - दिल की महफ़िल)

हम तो अफ़लाक की ख़ामोशियों को सुन के ही।
शिद्दत-ए-तूफाँ का अंदाज़ा लगा लेते हैं।।
(अफ़लाक - आसमान का बहु०,
 शिद्दत-ए-तूफाँ - तूफान की तीव्रता)

तुमसे दो अश्क़ छिपाकर नहीं रक्खे जाते।
हम तो जो कुछ भी है सीने में दबा लेते हैं।।

हम-कलामी नहीं ख़ुद से ये तो ख़ल्वत है मियाँ।
हम ग़ज़ल लिखते हैं और ख़ुद को सुना लेते हैं।।
(हम कलामी - वार्त्तालाप)

लोग हैरान-ओ-परेशान हुए जाते हैं।
जब भी हम चेहरे पे मुस्कान सजा लेते हैं।।

कोई ग़म-ख़्वार हो अपना सा नज़र आता है।
हम तो 'साहिल' उसे सीने से लगा लेते हैं।।
(ग़म-ख़्वार - ग़म खाने वाला)
                

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