सर ए बाजार हमने इश्क का इजहार कर डाला, हमें पागल समझ कर उसने भी इनकार कर डाला।।

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एक दिल की शायरी

सर ए बाजार हमने इश्क का इजहार कर डाला, हमें पागल समझ कर उसने भी इनकार कर डाला।।

आपको सभी तरह की शायरी, उर्दू - हिंदी  भाषा में मिलेगा. नाथ शरीफ़, ग़ज़ल, मनकबत, हमद, और कई तरह की शायरी

शायरी, कविता का एक ऐसा रूप है जो हमारी भावनाओं को दूसरों तक तक पहुंचने में मदद करता है।

कई बार हम अपनी दर्द को किसी  से बयां करने में सक्षम नहीं रहते और उस हालत में हम अपनी दर्द को शायरी के दरमियान दूसरों तक पहुंचाते हैं।

अगर आप शायरी, ग़ज़ल मनकबत हमद नाआत पढ़ने में दिलचस्प रखते हैं तो आप सही जगह पर आएं हैं।



सर ए बाज़ार हमने इश्क़ का इज़हार कर डाला |

हमे पागल समझ कर उसने भी इन्कार कर डाला॥ १


भले चंगे कभी थे हम जहाँ में इश्क़ से पहले |

मुहब्बत में किसी के ख़ुद को फिर बीमार कर डाला॥ २


तेरी हीं आरज़ू थी इश्क़ में बरबाद हो जाऊँ |

तेरे खातिर वफ़ा में ख़ुद को फिर मिस्मार कर डाला॥ ३


ज़माना ढ़ूँढ़ता ही रह गया सूरत यहाँ तेरी |

हर इक तस्वीर को मैने तेरा रुख़सार कर डाला॥ ४


यहाँ हर रोज़ रातों को बिखर जाती है हर इक शय |

मुहब्बत ने मेरे दिल को सनम बाज़ार कर डाला॥ ५


सदा कोई भी हो तुझ तक पहुँच कर लौट आती है |

मेरी आवाज़ को किसने यहाँ बेकार कर डाला॥ ६


सफ़र में धूप थी साया किसी का था नहीं उस पर |

मुसाफ़िर ने सफ़र को हीं यहाँ घर बार कर डाला॥ ७


चले आओ कि दिल फ़रियाद करता है बुलाता है |

बिना तेरे किसी ने ज़िन्दगी बेज़ार कर डाला॥ ८


नज़र आये वो जब भी दिल लगा बैठे उन्हीं से हम |

यही गलती "अमन" हमने यहाँ हर बार कर डाला॥ ९


शब्दार्थ:-

सर ए बाज़ार- पूरे बाज़ार के सामने/इज़हार- मन के भाव को प्रकट करना/ इन्कार- मना कर देना/

वफ़ा- मुहब्बत/ मिस्मार- बरबाद, नष्ट/ रुख़्सार- चेहरा/ शय- वस्तु/ सदा- पुकार, आवाज़/सफ़र- यात्रा/ साया- छाँह/ मुसाफ़िर- सफ़र में चलने वाला/ फ़रियाद- दुहाई/ बेज़ार- अप्रसन्न, नाराज़





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