अब मैं तजुर्बे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूं ! कोई प्यार जताए तो जेब संभाल लेता हूं !!

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एक दिल की शायरी

अब मैं तजुर्बे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूं ! कोई प्यार जताए तो जेब संभाल लेता हूं !!

आपको सभी तरह की शायरी, उर्दू - हिंदी  भाषा में मिलेगा. नाथ शरीफ़, ग़ज़ल, मनकबत, हमद, और कई तरह की शायरी

शायरी, कविता का एक ऐसा रूप है जो हमारी भावनाओं को दूसरों तक तक पहुंचने में मदद करता है।

कई बार हम अपनी दर्द को किसी  से बयां करने में सक्षम नहीं रहते और उस हालत में हम अपनी दर्द को शायरी के दरमियान दूसरों तक पहुंचाते हैं।

अगर आप शायरी, ग़ज़ल मनकबत हमद नाआत पढ़ने में दिलचस्प रखते हैं तो आप सही जगह पर आएं हैं।


दोस्तों पेश है आपके खिदमत में एक बेहतरीन ग़ज़ल जो पढ़कर आपकी हिम्मत बुलंद हो जाएगा। और साथ में आपको दुनिया में जिन्दगी बसर करने के लिए हौसला 100 गुणा बढ़ जाएगा श।

तो चलिए आज की ग़ज़ल को शुरू करते हैं


 अब मैं तजुर्बे के मुताबिक़ खुद को ढाल लेता हूं !


कोई  प्यार  जताए  तो  जेब  संभाल  लेता   हूं !!



नहीं  करता  थप्पड़  के  बाद  दूसरा  गाल आगे !


  खंजर  खींचे  कोई  तो  तलवार निकाल लेता हूं !!


वक़्त  था  सांप  की  परछाई   डरा   देती  थी !

अब  एक  आध  मै  आस्तीन में  पाल  लेता हूं !!


 मुझे   फासने   की   कहीं   साजिश   तो   नहीं !

हर  मुस्कान  ठीक  से  जांच  पड़ताल  लेता हूं !!


बहुत  जला  चुका  उंगलियां मैं  पराई  आग में !

अब  कोई झगड़े में  बुलाए तो मै  टाल देता हूं !!


सहेज  के  रखा  था  दिल  जब  शीशे  का  था !

पत्थर का हो चुका अब मजे से उछाल लेता हूं !!



2nd poetry 


राते  रूठी  है  मना  लू  तो  ज़रा  आंख लगे।
चाराग दिल में डुबा लूं  तो  ज़रा  आंख  लगे।।

कोशिश है कि भुला देंगे उसे रफ्ता रफ्ता।
नम आंखो से भुला दूं तो ज़रा आंख लगे।।

ज़माने  की  निगाहों  में  नज़र  आता  हूं  बहुत।
ख़ुद  निगाहों  से  गिरा  लू  तो  ज़रा  आंख  लगे।।

सहराओ में भटक रहा था मैं इक उम्र तलक।
जन्नत जहन से  भुला  दूं तो  ज़रा  आंख  लगे।

नफा था कि  नुकसान  से गुज़र  गया  हूं  मै।
खसारा करके गुज़ारूं तो ज़रा  आंख लगे।।

काक आंखो का चुराया था किन हसीनो ने।
रात आंखो में जला दूं तो  ज़रा  आंख  लगे।

मैं  कमजर्फ  रहा हूं  निगाहों में ज़माने  की बहुत।
तुम भी आंख से  गिरा  दो  तो  ज़रा  आंख  लगे।।

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