सुकूत ए मर्ग से डर कर शहर हमने बदल डाला। परिन्दें जब लगे मरने शजर हमने बदल डाला॥

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एक दिल की शायरी

सुकूत ए मर्ग से डर कर शहर हमने बदल डाला। परिन्दें जब लगे मरने शजर हमने बदल डाला॥

आपको सभी तरह की शायरी, उर्दू - हिंदी  भाषा में मिलेगा. नाथ शरीफ़, ग़ज़ल, मनकबत, हमद, और कई तरह की शायरी

शायरी, कविता का एक ऐसा रूप है जो हमारी भावनाओं को दूसरों तक तक पहुंचने में मदद करता है।

कई बार हम अपनी दर्द को किसी  से बयां करने में सक्षम नहीं रहते और उस हालत में हम अपनी दर्द को शायरी के दरमियान दूसरों तक पहुंचाते हैं।

अगर आप शायरी, ग़ज़ल मनकबत हमद नाआत पढ़ने में दिलचस्प रखते हैं तो आप सही जगह पर आएं हैं।


सुकूत ए मर्ग से डर कर शहर हमने बदल डाला।

परिन्दें जब लगे मरने शजर हमने  बदल  डाला॥

सुना  उस  राह से  कोई  कभी  वापस  नहीं  आया।

इसी इक ख़्याल से डर कर सफ़र हमने बदल डाला॥

ख़लल  डाले न  कोई  शय  रहे  रौशन  तेरा चेहरा।

जमाल ए यार के खातिर क़मर हमने बदल डाला॥

बहुत नाराज़ थी दुनिया  यहाँ  मेरी  सदाक़त  से।

तभी तो सत्य कहने का हुनर हमने बदल डाला॥

रहा इक उम्र जिस घर में  वही  जब  काटने  दौड़ा।

परेशां हो के तब आख़िर वो घर हमने बदल डाला॥

रक़ीबों ज़ख़्म खाने की नहीं हिम्मत है अब मुझमे।

इलाज ए दर्द के दौरां  जिगर  हमने  बदल  डाला॥

रखा ज़ख़्म ए जिगर ताज़ा  यहाँ  हर  हाल  में  हमने।

यहाँ ज़ख़्म ए जिगर का पर असर हमने बदल डाला॥

बदल पाना "अफशा" उसको यहाँ मुमकिन न हरगिज़ था।

नहीं उसको  यहाँ  ख़ुद  को  मगर  हमने  बदल  डाला॥


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