आपको सभी तरह की शायरी, उर्दू - हिंदी भाषा में मिलेगा. नाथ शरीफ़, ग़ज़ल, मनकबत, हमद, और कई तरह की शायरी
शायरी, कविता का एक ऐसा रूप है जो हमारी भावनाओं को दूसरों तक तक पहुंचने में मदद करता है।
कई बार हम अपनी दर्द को किसी से बयां करने में सक्षम नहीं रहते और उस हालत में हम अपनी दर्द को शायरी के दरमियान दूसरों तक पहुंचाते हैं।
अगर आप शायरी, ग़ज़ल मनकबत हमद नाआत पढ़ने में दिलचस्प रखते हैं तो आप सही जगह पर आएं हैं।
दास्तान ए इश्क़ का अंजाम भी क्या ख़ूब है |
ग़ैर के होठों पे उसका नाम भी क्या ख़ूब है॥
बेचता है दर्द ए दिल वो कौड़ियों के भाव में |
इश्क़ के महफ़िल में जिसका दाम भी क्या ख़ूब है॥
बाद तेरे शाम भी क्या शाम जैसी रह गयी |
फिर भी कहता हूँ मै देखो शाम भी क्या ख़ूब है॥
मेरी नज़रों से जो देखो तो नज़र आये तुम्हें |
कश्मकश*में ज़ीस्त की आराम भी क्या ख़ूब है॥
मुद्दतों के बाद उसके लब पे मेरा नाम है |
काम से ही हो मगर पर काम भी क्या ख़ूब है॥
आख़िरी पल में अफशा पैगाम उनका है मिला |
वक्त क्या है और फिर पैगाम भी क्या ख़ूब है॥
दूसरा गजल
उम्र भर आँखों में चुभता बस वही शीशा रहा |
रात भर अश्क़ों में घुलता बस वही चेहरा रहा॥
मैं अकेला कब यहाँ हूँ ज़िन्दगी की राह में |
अक्स* बनकर साथ कोई उम्र भर चलता रहा॥
मुन्तज़र जिसके लिए आँखे रही हैं उम्र भर |
मौत आयी वो ना आया कैसा ये सदमा रहा॥
क़ब्र में भी सोके हमको चैन क्यूँ आया नहीं |
कौन मेरे क़ब्र पर यूँ रात भर रोता रहा॥
ढ़ूंढ़ता फिरता है पानी हर घड़ी मुझमे कोई |
कौन है जो मेरे भीतर उम्र भर प्यासा रहा॥
रोज़ थोड़ा थोड़ा करके कम हुआ जाता हूँ मैं |
कौन है जो मेरे भीतर मुझसे भी ज़्यादा रहा॥
बेवफ़ा उसको यहाँ कैसे भला मैं नाम दूँ |
दूर जाकर भी वो मुझसे उम्र भर मेरा रहा॥
सांस का चलना अफशा है ज़िन्दगी जीना नहीं |
सोचिये फिर कैसे आखि़र मैं यहाँ ज़िन्दा रहा॥
बहर
(2122) (2122) (2122) (212)
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