गीतों के संग तुन-तुन बजता हम इकतारा भूल गये हैं। जीवन का संगीत सुनाता वह बनजारा भूल गये हैं।

Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

एक दिल की शायरी

गीतों के संग तुन-तुन बजता हम इकतारा भूल गये हैं। जीवन का संगीत सुनाता वह बनजारा भूल गये हैं।

  हम कुछ बातें भूल गये हैं.....




गीतों के संग तुन-तुन बजता हम इकतारा भूल गये हैं।


जीवन का संगीत सुनाता वह बनजारा भूल गये हैं।




छोटे थैले में भर लाता कितने खुशियों के सन्देशे,


गाँव शहर में फिरता था जो इक हरकारा भूल गये हैं।




बच्चों की लोरी में परियाँ, जादूगर की चाल कहानी,


दादी-नानी का वह प्रेमल सा पुचकारा भूल गये हैं।




पुरखे अनपढ़ थे पर गहरी ज्ञान समझ की बातें कहते,


चार किताबें पढ़कर हम वह जीवनधारा भूल गये हैं।




धरती और प्रकृति माँ ने जो हमको ये उपहार दिए हैं,


निर्मोही नाशुक्री हम उपकार वो सारा भूल गये हैं।




सिरहाने पर प्रहरी बन कर सदियों से जो रक्षा करता,


आज हिमालय का वह छाजन वह ओसारा भूल गये हैं।




अविरल बहती है वह जीवन देने वाली पावन गङ्गा, 


हमने स्वयं किया है जिसका मलिन किनारा भूल गये हैं।




दुर्दिन में हैं आज वहीं पर वह केवट वह जर्जर तरनी,


जिसने प्रभु को गङ्गा तट के पार उतारा भूल गये हैं।




शहरों की जगमग ने जब से आँखों को हैरान किया है,


गाँव, सवेरा, दीपक, जुगनू , चन्दा, तारा भूल गये हैं।




कोयल जिसके तट पर फैली अमराई में गीत सुनाती,


उस चंचल नदिया की अल्हड़ बहती धारा भूल गये हैं।




सिमटे हैं अस्तित्व हमारे छोटे कमरों के बाड़ों में,


पनघट, पीपल, झूला, आँगन, घर, चौबारा भूल गये हैं।




हम सब खुदगर्ज़ी में डूबे बस अपना-अपना ही करते,


कोई बेघर भूखा सोता है दुखियारा भूल गये हैं।




कौन किसी के दुख सुख में अब दिल से शामिल हो पाता है,


करते हैं बस रस्म-अदाई जज़्बा सारा भूल गये हैं।




माना हमने भौतिकता में खूब तरक्की कर ली लेकिन,


भाव सहज में जीने का जो मंत्र उचारा भूल गये हैं।




देश वही है लोग वही हैं मिलजुल कर रहते थे 'चन्दन',


नफ़रत की बातों में पड़ कर भाई चारा भूल गये हैं।

Post a Comment

0 Comments