नमाज़ें कर रहे हैं हम क़ज़ा ऐसे नहीं होता भुला बैठे हैं हम अपना ख़ुदा ऐसे नहीं होता

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एक दिल की शायरी

नमाज़ें कर रहे हैं हम क़ज़ा ऐसे नहीं होता भुला बैठे हैं हम अपना ख़ुदा ऐसे नहीं होता

 नमाज़ें कर रहे हैं हम क़ज़ा ऐसे नहीं होता

भुला बैठे हैं हम अपना ख़ुदा ऐसे नहीं होता


नहीं कुछ ख़ौफ़ महशर का न जन्नत की तमन्ना है

चढ़ा है  सिर्फ  दौलत  का  नशा  ऐसे  नहीं  होता


बुलाती हैं हमें पाँचो पहर ही मस्जिदें लेकिन

नहीं सुनते अज़ानों की सदा ऐसे  नहीं  होता


अली के लाडले को प्यार था इस्लाम से वरना

यक़ीनन सर कभी तन से जुदा ऐसे नहीं होता


गया शददाद भी कहता है दुनिया ए  फ़ानी से

मिले दुनियां में जन्नत का मज़ा ऐसे नहीं होता


अरे फ़िरऔन कर लेता अगर तौबा गुनाहों से

फ़ना दरिया में तेरा  क़ाफ़िला ऐसे  नहीं होता


अभी भी वक़्त है अफशा ख़ुदा की बन्दगी करलो

करो  तौबा   गुनाहों   से   ज़रा  ऐसे  नहीं  होता


Gazal


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